बिहार की राजनीति इस समय एक नए मोड़ पर खड़ी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी “वोटर अधिकार यात्रा” के जरिए बिहार की सियासत में नई ऊर्जा भरने की कोशिश शुरू की है। लंबे समय से राज्य में कांग्रेस संगठनात्मक कमजोरी और नेतृत्व संकट से जूझ रही है, लेकिन राहुल गांधी की यह पहल पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जोश भरने की दिशा में अहम कदम मानी जा रही है।
राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान जनसभा और संवाद में बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि बिहार जैसे राज्य में लोकतांत्रिक हक और सामाजिक न्याय की रक्षा तभी संभव है, जब हर वोटर को उसके अधिकार की सही समझ और उपयोग की ताकत मिले। उन्होंने बेरोजगारी, किसानों की समस्या और शिक्षा व्यवस्था जैसी जमीनी मुद्दों को उठाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि कांग्रेस जनता की असल चिंताओं पर केंद्रित है।
हालांकि सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी की यह पहल बिहार में कांग्रेस के जनाधार को वास्तविक मजबूती दे पाएगी? क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में राज्य की राजनीति एनडीए बनाम महागठबंधन की टक्कर पर टिकी हुई है। जेडीयू और राजद जैसे बड़े दलों की मौजूदगी में कांग्रेस अब तक सिर्फ सहयोगी दल के तौर पर ही देखी जाती रही है। ऐसे में राहुल गांधी का यह अभियान पार्टी को ‘फ्रंट फुट’ पर लाने की रणनीति माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा कार्यकर्ताओं के बीच आत्मविश्वास बढ़ाने में सफल रहती है और गांव-गांव तक संगठन को मजबूत करने का रोडमैप तैयार करती है, तो कांग्रेस की स्थिति 2025 के विधानसभा चुनाव में पहले से कहीं बेहतर हो सकती है। वहीं, भाजपा और जेडीयू इसे केवल एक ‘राजनीतिक दिखावा’ बताकर इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं।
अब देखने वाली बात होगी कि यह यात्रा सिर्फ पार्टी के कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने तक सीमित रहती है या फिर वास्तव में कांग्रेस के वोट बैंक में ठोस इजाफा करने का काम करती है। बिहार की सियासत में राहुल गांधी की यह पहल एक महत्वपूर्ण प्रयोग साबित हो सकती है।






















