बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार झारखंड में अपनी पैठ बनाने की तैयारी में है। झारखंड में जदयू की खो चुकी जमीन तलाशने के साथ इसके विस्तार का इरादा है। 2024 में विधानसभा और लोकसभा चुनाव निशाने पर है। पार्टी की कोशिश होगी कि उसका प्रतिनिधित्व हो, कम से कम पसंगा वोट की हैसियत बने जो दूसरों को पराजित करने की ताकत रखता हो। एक पोलीटिकल फोस बने। यहां से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को बिहार कोटे से राज्यसभा सदस्य बनाकर ही नीतीश कुमार ने अपने इरादों के बारे में संकेत दे दिया था। 1932 के खतियान और कुड़मी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की उठती मांग ने कुड़मियों की 22 प्रतिशत आबादी वाले झारखंड में नीतीश कुमार के लिए एक नई संभावना पैदा कर दी है।
1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को कैबिनेट से मंजूरी
हेमन्त सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को कैबिनेट से मंजूरी दे दी है इसे सदन से पास कराया जाना है। मगर इसके एक साल पहले एक बड़े औद्योगिक घराने के दबाव में 1931 में ही कुड़मी को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया गया था। अब कुड़मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को लेकर आक्रामक आंदोलन शुरू हो गया है जो नीतीश कुमार की पार्टी के लिए बड़ी संभावना पैदा कर दी है। ऐसे में देखना यह है कि इस आंदोलन को नीतीश की पार्टी कितना कैश करा पाती है। झारखंड के शहरी इलाकों में बड़ी संख्या में बिहार के लोग भी हैं जिनपर नीतीश कुमार का प्रभाव है। कल तक एक रहे अब के पड़ोसी राज्य बिहार में जदयू का 17 साल से शासन है मगर झारखंड में कोई नामलेवा नहीं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में उसका खाता तक नहीं खुला।
जदयू के समर्थन से ही झारखंड में सरकार बनी थी
हालांकि राज्य के विभाजन के तत्काल बाद जदयू के समर्थन से ही झारखंड में सरकार बनी थी। उस समय शरद यादव वाले जनता दल के तीन और समता पार्टी के पांच विधायक थे। 2003 में समता पार्टी, शरद यादव वाले जनता दल यू और लोक शक्ति पार्टी का विलय कर जनता दल यू का विधिवत गठन किया गया था। मगर बाद में इसका जनाधार लगातार घटता गया। अलग राज्य बनने के बाद 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 6 सीटों पर तो 2009 में मात्र दो सीटों पर जीत मिली थी। 2014 और 2019 में शून्य पर आउट होना पड़ा।
16 अक्टूबर को पार्टी का है राज्य सम्मेलन
खीरू समता पार्टी के समय से ही नीतीश के भरोसेमंद सिपाही रहे। खीरू के लिए संसद पहुंचना एक प्रकार से उस प्रतिबद्धता का पुरस्कार है। राज्यसभा की सदस्यता हासिल करने के बाद खीरू प्रदेश में रेस हो गये। जिलों में पार्टी को सक्रिय करने के लिए लगातार बैठकें करने लगे। 16 अक्टूबर को पार्टी का राज्य सम्मेलन है। राजद और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष रहे जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा ने नीतीश कुमार में भरोसा जाहिर करते हुए 16 अक्टूबर को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की मौजूदगी में पार्टी का दामन थामने का एलान कर दिया है। यह राणा के साथ-साथ जदयू के लिए भी राहत की बात है। हालांकि यह तो आने वाला समय बतायेगा कि खीरू पार्टी को कितना सक्रिय कर पाते हैं और गौतम सागर राणा के आने से कितनी ताकत मिलती है।
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कौन हैं गौतम सागर राणा

तीन राउंड झारखंड में राजद के प्रदेश अध्यक्ष रहे गौतम सागर राणा जेपी आंदोलन की उपज हैं। रांची विवि से स्नातक राणा जनता दल के टिकट पर 1977 में बगोदर से पहली बार विधायक चुने गये। 1985 में भी इस सीट पर उन्होंने कब्जा किया। संयुक्त बिहार में वे 1991 में युवा राजद के प्रदेश अध्यक्ष रहे। अलग राज्य बनने के बाद वे जदयू के भी प्रदेश अध्यक्ष बने। लोकसभा चुनाव के पहले मार्च 2019 के अंतिम सप्ताह में ही राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी राजद छोड़ भाजपा में शामिल होने दिल्ली गईं तो तत्काल राजद से गौतम सागर राणा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।
राणा के लिए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हासिल करने का यह तीसरा मौका था। हालांकि वे इस पर पद तीन माह भी नहीं रह सके। पार्टी की करारी हार और अपनी उपेक्षा के कारण जून 2019 में राजद से किनारा कर अलग राष्ट्रीय जनता दल लोकतांत्रिक का एलान किया। राणा इसके अध्यक्ष चुने गये। उस समय राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद रांची की ही जेल में थे।