साल 2023 के पांच महीने तो बीत गए। बिहार में रेस लगी हुई। यह रेस ज्यादा गरमी दिखाने की है। मौसम और राजनीति अपनी फुल स्पीड में आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि राजनीति की गरमी हमेशा ही बिहार में मौसम की गर्मी पर भारी पड़ी है। जनवरी में जब साल की शुरुआत हुई तो मौसम सर्द था। लेकिन बिहार की राजनीति तो जैसे चूल्हे से उतरने का नाम नहीं ले रही थी। पिछले कैलेंडर इयर में नए सियासी समीकरण में गोटियां सेट करने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार निकले बिहार भ्रमण पर। यात्रा का नाम दिया गया समाधान यात्रा। आज जब पांचवा महीना खत्म हो रहा है, तब भी चर्चा सीएम नीतीश के यात्राओं की हो रही है। बिहार भ्रमण के बाद नीतीश कुमार ने देश भ्रमण भी कर लिया।
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जनवरी में ‘समाधान’ ढूंढ़ने निकले सीएम नीतीश
सबसे पहले बात करते हैं जनवरी 2023 की। पांच जनवरी से बिहार के हर जिले की यात्रा पर निकले सीएम नीतीश कुमार ने इसका मकसद बताया कि वो जनता से मिलकर उन मुद्दों को समझना चाहते हैं, जो अब तक छूटे थे। कंपकंपाती सर्दी में सीएम की यात्रा ने खूब सुर्खियां बटोरीं। सरकार के साथी इस यात्रा की खूबियां गिनाते नहीं थके तो विपक्ष में खड़ी भाजपा इस पर आग-बबूला होती रही। नीतीश कुमार के खिलाफ खड़े भाजपा, चिराग पासवान, प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह यही कहते दिखे नीतीश कुमार टाइमपास कर रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार ने विरोधियों की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और यात्रा करते रहे।
मोहब्बत वाली फरवरी में ब्रेकअप का दर्द
फरवरी का महीना शुरू हो गया था। वैसे तो फरवरी का महीना मोहब्बत का महीना माना जाता है। लेकिन बिहार की राजनीति में 2023 की फरवरी ब्रेकअप के महीने के रूप में सामने आई। जनवरी में शुरू हुई नीतीश कुमार की समाधान यात्रा ने उनके करीबी रहे उपेंद्र कुशवाहा के जीवन में व्यवधान ला दिया। नीतीश कुमार के रवैये से नाराज उपेंद्र कुशवाहा ने फरवरी माह में ही जदयू से नाता तोड़ दिया। इस्तीफा दे दिया। विधान परिषद से भी इस्तीफा दे दिया। एक तरफ कंपकंपाती ठंड, गुलाबी ठंड में बदल रही थी। तो दूसरी ओर बिहार की राजनीति में बगावत के नए शोलों ने जगह बना ली थी।
मार्च में भाजपा का सटीक वार
इसके बाद आया मार्च। ठंड गायब हो चुकी थी, तो अब तक नीतीश कुमार के पाले से गाइड होने वाली राजनीति में भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक चल दिया। नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर हो जाने के बाद जदयू, भाजपा पर यही आरोप लगाती थी कि उसके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो नीतीश कुमार का मुकाबला कर सके। यह सवाल वाजिब इसलिए भी लगता था क्योंकि डेढ़ दशक से बिहार की राजनीति में भाजपा ने जिन चेहरों को आगे रखा था, उन्हें या तो दूसरे रोल में शिफ्ट किया जा चुका था या फिर निष्क्रिय करने की तैयारी हो रही थी। सुशील मोदी को राज्यसभा में, नित्यानंद राय और गिरिराज सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शिफ्ट किया गया था। तो नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार जैसे नेताओं को साइड कर दिया गया था। लेकिन मार्च 2023 में भाजपा ने उस नेता को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया, जो नीतीश कुमार से बगावत के बाद भाजपा में शामिल हुए थे। नाम है सम्राट चौधरी, जो आज नीतीश कुमार और जदयू पर हर मुमकिन हमलावर हैं।
भाजपा के खिलाफ द्वारे-द्वारे नीतीश कुमार
समाधान यात्रा पूरी होने, उपेंद्र कुशवाहा की बगावत देख लेने और भाजपा में सम्राट के उदय के बाद नीतीश कुमार ने अप्रैल महीने में अपनी अगली रणनीतिक यात्रा पर निकले। अलग अलग राज्यों में अलग अलग राजनीतिक दलों के नेताओं से नीतीश कुमार ने मुलाकात का सिलसिला 12 अप्रैल से शुरू किया। इसमें नीतीश कुमार ने उन दलों के नेताओं से मुलाकात की, जो भाजपा के खिलाफ रहे थे। अप्रैल में उन्हें दिल्ली में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और लेफ्ट के नेताओं से मुलाकात की। तो कोलकाता में ममता बनर्जी से मिले। इसके बाद लखनऊ में अखिलेश यादव से नीतीश कुमार की मुलाकात हुई। इन मुलाकातों ने देश में विपक्षी एकता के सपने को फिर से जिंदा करने का आधार दे दिया।
मई की यात्राओं ने बना दिया जून का मंच
नीतीश कुमार की यात्राएं मई माह में भी जारी रहीं। भुवनेश्वर में नीतीश कुमार ने नवीन पटनायक से मुलाकात की तो रांची में हेमंत सोरेन से मिले। मुंबई में उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिलने के बाद नीतीश एक बार फिर दिल्ली गए। इस बार भी राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ अरविंद केजरीवाल से नीतीश कुमार की मुलाकात हुई। इससे पहले बेंगलुरु में कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण में भी विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार कांग्रेस के मंच पर दिखे। नीतीश कुमार की इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि आने वाले महीने यानि जून में पटना में विपक्षी दलों की बैठक होनी तय हो चुकी है।