RANCHI : इस वर्ष नवरात्रि 15 अक्टूबर 2023 से शुरू हो चुकी है। नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों कि पूजा कि जाती है। पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है।
प्रथम स्वरूप शैलपुत्री

देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप देवी शैलपुत्री के नाम से जाना जाता हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण देवी माँ का नाम शैलपुत्री रखा गया। पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा और अर्चना की जाती हैं। देवी शैलपुत्री के दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित होता हैं। इनका वाहन वृषभ हैं।
द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ “तप का आचरण करने वाली” होता है। ब्रह्मा का अर्थ “तपस्या” और चारिणी का अर्थ “आचरण करने वाली”। देवी ब्रह्मचारिणी के दाएँ हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल धारण करती हैं।
तृतीय स्वरुप चंद्रघंटा

माँ दुर्गा का तीसरा रूप देवी चंद्रघंटा कहलाता हैं और नवरात्रि के नौवें दिन इनकी पूजा की जाती हैं। सिंह पर सवार देवी का यह रूप युद्ध के प्रति सजगता और शक्ति को दर्शाता हैं जिससे बुरे व्यक्ति, दानव, राक्षस आदि डरते हैं। इस रूप में देवी के दस हाथ हैं, उनके हाथो में खडग और अन्य शस्त्र से विभूषित हैं।
चतुर्थ स्वरुप कूष्माण्डा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती हैं। इस देवी ने श्रृष्टि की रचना की थी इसलिए इन्हें आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता हैं। देवी माँ के इस रूप में आठ भुजाएँ हैं, इनमें चक्र, गदा, धनुष, बाण, अमृतकलश, कमल-पुष्प, कमण्डल और माला आदि हैं। कूष्माण्डा माता का वाहन सिंह हैं।
पंचम स्वरुप स्कंदमाता

स्कंदमाता की पूजा अर्चना नवरात्रि के पाँचवे दिन की जाती हैं। अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूरी करने वाली माता परमसुखदायी हैं। कार्तिकेय स्कन्द कुमार की माता होने के कारण भी इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता हैं। माता के इस रूप में चार भुजाएँ हैं।
षष्ठ स्वरुप कात्यायनी

देवी कात्यायनी की उपासना और आराधना करने से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की सुलभ प्राप्ति होती है। जो भक्त माता की पूजा अर्चना सच्चे मन से करते हैं उनके दुःख, रोग, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। माँ कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती हैं। देवी के इस रूप में चार भुजाएँ हैं, दायें तरफ के ऊपर का हाथ अभयमुद्रा में हैं और नीचे का हाथ वरमुद्रा में हैं। देवी के बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित हैं।
सप्तम स्वरुप कालरात्रि

देवी कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी रिद्धि और सिद्धि के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम राक्षसी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। नवरात्री के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना की जाती हैं। यह देवी भक्तो की काल से भी रक्षा करती हैं। देवी के इस रूप में देवी के तीन नेत्र हैं।
अष्ट स्वरुप महागौरी

नवरात्रि के आठवे दिन देवी महागौरी की पूजा की जाती हैं। देवी की कृपा से सारे पाप दूर हो जाते हैं और जीवन में अलौकिक सिद्धिया भी प्राप्त होती हैं। इस रूप में देवी के चार हाथ हैं जो एक हाथ अभय मुद्रा में, दुसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में डमरू और चौथा हाथ वरमुद्रा में हैं।
नवम स्वरुप सिद्धिदात्री

सिद्धिदात्री देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था, इसी कारण भगवान् शिव जी को अर्द्धनारीश्वर नाम से भी जाना जाता हैं। देवी माँ के इस रूप में चार भुजाएँ हैं और उनकी हाथो में चक्र, गदा, शंख और पुष्प शुसोभित हैं। यह देवी सब मनोकामना को पूर्ण करने वाली और सुख देने वाली हैं। नवरात्रि के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री का पूजा विधि-विधान से जरूर करना चाहिए।