काबुल: अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता एक बार फिर अस्थिरता के दौर में प्रवेश कर रही है। तालिबान के भीतर की दरार अब खुलकर सामने आने लगी है। अफगान गृहमंत्री और कुख्यात हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी ने तालिबान प्रमुख हैबतुल्ला अखुंदजादा से कंधार में सीधी मुलाकात कर उन्हें खुली चेतावनी दी है। यह मुलाकात तब हुई जब दोनों के बीच तनाव चरम पर बताया जा रहा था।
गुप्त मुलाकात में गरमाया माहौल
सूत्रों के अनुसार, यह मुलाकात कंधार में एक उच्चस्तरीय बैठक के दौरान हुई, जिसमें अफगान रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब (मुल्ला उमर के बेटे) और खुफिया प्रमुख अब्दुल हक वासिक ने मध्यस्थता की भूमिका निभाई। रिपोर्ट्स बताती हैं कि हक्कानी ने अखुंदजादा की कट्टरपंथी नीतियों की जमकर आलोचना की और चेताया कि अगर इसी तरह सत्ता कुछ लोगों में केंद्रित रही, तो तालिबान का शीर्ष नेतृत्व टूट सकता है।
फेसबुक की जगह यहां भी मिली धमकी!
हक्कानी की यह मुखर नाराजगी असामान्य मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि हक्कानी को अमेरिका समेत कुछ अंतरराष्ट्रीय ताकतों का भी परोक्ष समर्थन हासिल है, हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। गौरतलब है कि हक्कानी पहले पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का प्रिय चेहरा रह चुका है।
सत्ता पर नज़र, नीति पर आपत्ति
2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अब तक हक्कानी और अखुंदजादा के बीच मतभेद समय-समय पर सामने आते रहे हैं। लेकिन हालिया घटनाक्रम में हक्कानी की महत्वाकांक्षाएं खुलकर सामने आ गई हैं। उनका आरोप है कि अखुंदजादा की नीतियों के चलते तालिबान जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों का समर्थन खो रहा है।
‘मुझे साइडलाइन किया जा रहा है’ – हक्कानी
हक्कानी ने गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारियां सद्र इब्राहिम को सौंपे जाने पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना है कि यह उन्हें सत्ता से दूर करने की साजिश है। वहीं अखुंदजादा ने सफाई देते हुए कहा कि हक्कानी की अनुपस्थिति में सद्र और मोहम्मद नबी को समान शक्तियां दी गई थीं।
गृह मंत्री की कुर्सी अभी भी खाली
हालांकि बातचीत के बाद माहौल थोड़ा नरम हुआ, लेकिन हक्कानी अब तक गृहमंत्री के पद पर सक्रिय नहीं हुए हैं। तालिबान के भीतर यह सत्ता संघर्ष आने वाले समय में अफगानिस्तान की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। तालिबान की सत्ता के गलियारों में उठता तूफान इस ओर इशारा कर रहा है कि तालिबान अब सिर्फ बाहर से नहीं, अंदर से भी टूटने के कगार पर है। हक्कानी का मुखर विरोध और अखुंदजादा की अडिग नीतियां आने वाले दिनों में अफगानिस्तान के लिए नई हलचल ला सकती हैं।