पटना की सियासत एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। तेजस्वी यादव को लेकर उम्मीदें चिरपरिचित हैं, लेकिन इस बार उनके नाम पर सस्पेंस गहरा है। महागठबंधन की ओर से भले ही कोऑर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष बनाकर उन्हें पहली पंक्ति में खड़ा कर दिया गया हो, लेकिन मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करने की रणनीति सियासी गलियारों में अब चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है।
महागठबंधन में शामिल सभी प्रमुख दल — आरजेडी, लेफ्ट पार्टियां, वीआईपी — पूरी तरह से तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस? वह एक ‘पोलिटिकल ब्रेक’ बनकर खड़ी है। और यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
सूत्रों के अनुसार, 2025 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की ओर से कोई ‘सीएम फेस’ घोषित नहीं किया जाएगा। यह निर्णय लिया गया है कांग्रेस के हाईकमान स्तर पर, खासतौर पर कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे प्रभावशाली नेताओं के इनपुट के आधार पर। दिलचस्प बात यह है कि यही कांग्रेस 2020 में तेजस्वी को चेहरा बनाने में सबसे आगे थी। अब अचानक यह बदलाव क्यों?
रणनीति के पीछे की असली वजह: जातीय समीकरण और वोट बैंक की ‘सेंसेटिव’ गणना
कांग्रेस थिंक टैंक के मुताबिक तेजस्वी यादव को पहले से घोषित मुख्यमंत्री चेहरा बनाने से दो बड़े नुकसान हो सकते हैं:
- ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) में भ्रम और भय की स्थिति पैदा हो सकती है।
- अपर कास्ट वोटर्स का आकर्षण कम हो सकता है।
इन दोनों तबकों को संतुलित करने के लिए कांग्रेस चाहती है कि चेहरा चुनाव बाद घोषित हो। “जीत तो आपकी है ही, बस अभी नाम मत लीजिए…” — कांग्रेस की ओर से आरजेडी को मिल रहा यह मैसेज दरअसल सत्ता की ओर जाने वाली ‘संभावित’ सीढ़ी का हिस्सा है।
सीट शेयरिंग का ब्लूप्रिंट तैयार, कांग्रेस ने मानी 50 सीटें!
जानकारी के अनुसार, महागठबंधन की हालिया बैठक में सीटों का एक रफ बंटवारा लगभग तय हो चुका है:
- आरजेडी: 140 सीटों पर लड़ेगी
- कांग्रेस: 50 सीटों पर राजी
- लेफ्ट पार्टियां: लगभग 20 सीटें (माले की सीटें बढ़ सकती हैं)
- मुकेश सहनी: 20 सीटें
- अन्य छोटे दल: शेष बची लगभग 33 सीटों में हिस्सा
हालांकि अभी यह रूपरेखा सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन अंदरखाने बातचीत पूरी हो चुकी है। साथ ही, सभी दलों से यह पूछा गया है कि वे खुद बताएं कि वे किस सीट पर मजबूत हैं।
क्या रणनीति काम करेगी? या उल्टा पड़ेगा दांव?
2020 में तेजस्वी को चेहरा बनाकर महागठबंधन ने जनता के बीच जोश जरूर भरा था, लेकिन सत्ता की कुर्सी छू नहीं सके। अब 2025 में उलटी रणनीति अपनाई गई है — “चेहरा छुपाओ, समर्थन बटोरों”।
महागठबंधन मान रहा है कि बिना नाम लिए ही तेजस्वी की छवि वोटर्स में स्थापित है। वहीं, कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक और हरिजन वर्ग को फिर से अपने खेमे में लाने की जद्दोजहद में है। प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और नए प्रभारी के माध्यम से पार्टी ने अपना फोकस बदला है।
राजनीति की भाषा में यह “साइलेंट स्ट्रैटेजी” है, लेकिन जनता की नजर सब पर है।
आरजेडी के वरिष्ठ नेता मनोज झा ने भी सार्वजनिक मंच पर कहा — “तेजस्वी सीएम फिगर हैं, लेकिन फेस नहीं बताया गया है।” इसका सीधा मतलब यह है कि चेहरा सभी जानते हैं, बस नाम नहीं लिया गया है — शायद इसलिए कि नाम लेने से कहीं कोई वोट छिटक न जाए।
अब सवाल ये नहीं कि सीएम कौन होगा, सवाल ये है कि क्या ये रणनीति जीत दिला पाएगी?
बिहार की राजनीति में हर चुनाव एक प्रयोग होता है। इस बार का प्रयोग है “चेहरा नहीं, गठबंधन दिखाओ।” अब देखना ये है कि जनता चेहरे को खोजती है या गठबंधन के एजेंडे को। जो भी हो, तेजस्वी की चाल अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, रणनीतिक भी हो चुकी है। और पटना की फिजाओं में एक ही बात तैर रही है — “मुख्यमंत्री तो बनना तय है, बस ऐलान बाकी है…”