मुजफ्फरपुर: त्रिवेणी नहर घोटाला मामले में 38 साल बाद फैसला आया है। कोर्ट ने इस मामले में 20 हजार रुपये घोटाले के आरोपी को दोषी करार देते हुए चार साल कैद व 10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माने की राशि नहीं देने पर सजा बढ़ाई जा सकती है। गुरुवार को विशेष निगरानी न्यायालय में यह फैसला आया। विशेष निगरानी न्यायाधीश सत्यप्रकाश शुक्ला ने सजा के बाद पटना निवासी तत्कालीन सहायक अभियंता (एई) 76 वर्षीय सुरेंद्रनाथ वर्मा को जेल भेज दिया है। मामला 38 साल पुराना है 1986-87 में त्रिवेणी नहर मरम्मत के दौरान यह घोटाला हुआ था।तब सुरेंद्रनाथ वर्मा पूर्वी चंपारण के रामनगर अवर प्रमंडल में पदस्थापित थे।
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1987 में हुआ था घोटाला
मामला में साक्ष्य पेश करने वाले विशेष लोक अभियोक कृष्णदेव साह ने बताया कि घोड़ासाहन में त्रिवेणी नहर के मरम्मत में घोटाले की जांच मुख्यालय स्तर पर तत्कालीन डीआईजी डीपी ओझा के नेतृत्व में निगरानी टीम ने की थी। तीन करोड़ के मिट्टी के कार्य की जांच की गई थी जिसमें एक हजार स्थलों पर गड़बड़ी पाई गई। साथ ही 1.50 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। इस घोटाले को लेकर निगरानी ब्योरो ने अलग-अलग 13 एफआईआर दर्ज कराई। इसमें जून 1987 को 20 हजार 925 रुपये के घोटाले के आरोप में तत्कालीन निगरानी इंस्पेक्टर अरुण कुमार सिंह विनीत ने एक एफआईआर दर्ज की। जिसमें 38 साल बाद सजा सुनाई गई।
इसमें सुरेंद्रनाथ के अलावा तत्कालीन कार्यपालक अभियंता रामचंद्र प्रसाद सिंह, तत्कालीन जूनियर इंजीनियर नवल किशोर प्रसाद सिंह और ठेकेदार समी खान को आरोपित बनाया गया था। जांच के बाद निगरानी ब्योरो ने चारों आरोपितों पर चार्जशीट दायर की। ट्रायल के दौरान तीन आरोपित रामदचंद्र प्रसाद सिंह, नवल किशोर प्रसाद सिंह और ठेकेदार समी खान की मौत हो गई। जिंदा बचे तत्कालीन सहायक अभियंता पर ट्रायल चला। इसमें फैसला सुनाकर उन्हें सजा दी गई।