1 जुलाई 2019 से लागू हुए कन्कशन सब्स्टीट्यूट नियम में आईसीसी ने साफ किया था कि अगर किसी भी खिलाड़ी को खेल के दौरान सिर पर गेंद लगती है या किसी अन्य तरह से चोट लगती है तो मेडिकल टीम तुरंत उसकी जांच करेगी और जानेगी कि क्या खिलाड़ी आगे खेलने की स्थिति में है या नहीं। अगर खिलाड़ी खेलने की स्थिति में नहीं है तो उसकी जगह सब्स्टीट्यूट के तौर पर दूसरा खिलाड़ी खेल सकता है, जो कि बल्लेबाज की जगह बल्लेबाज, उसी तरह कीपर, फास्ट या स्पिन बॉलर, ऑलराउंडर की जगह उसी तरह का खिलाड़ी सब्स्टीट्यूट के तौर पर शामिल हो सकता है।
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हर नए नियम में कुछ न कुछ लूप होल होते हैं जो कि वक्त के साथ उसमें बदलाव होते रहते हैं। कुछ ऐसा ही विवाद भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टी 20 मैच में देखने को मिला जब भारतीय टीम की तरफ से शिवम दुबे जो कि 55 के स्कोर पर बैटिंग कर रहे थे। इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जिमी ओवर्टन की 19.5 वीं बॉल जो कि बाउंसर थी, वो बॉल शिवम दुबे के सर पर लगी। उसके बाद फिजियो जांच करने आए, तब तक ठीक था। आखिरी बॉल भी खेले। लेकिन मैदान के बाहर जाकर खबर ये निकलती है कि शिवम दुबे को समस्या हो रही है।
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जिस पर भारतीय टीम मैनेजमेंट ने उनकी जगह हर्षित राणा का चुनाव किया जो कि टेक्निकली तौर पर ऑलराउंडर ही कहा जाता है। मगर शिवम दुबे बैटिंग ऑलराउंडर हैं जो कि कभी कभी मीडियम पेस बॉलिंग कर लेते हैं दूसरी तरफ हर्षित राणा बॉलिंग ऑलराउंडर हैं जो कि विशुद्ध रूप से तेज गेंदबाज हैं और थोड़ी बहुत बल्लेबाजी कर लेते हैं। खिलाड़ी का चुनाव तो टीम करती है मगर खिलाने का अंतिम फैसला मैच रेफरी और चौथे अंपायर का होता है। इसलिए ये कह देना कि ये बेइमानी है बिल्कुल गलत है क्योंकि जो भी हुआ वो नियम के अनुसार हुआ।
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लेकिन एक क्रिकेट प्रेमी होने के नाते मेरी नजर में ये बिल्कुल भी सही नहीं था क्योंकि भारतीय टीम के पास शिवम दुबे की तरह ही ऑलराउंडर रमनदीप सिंह टीम में मौजूद थे। शिवम दुबे की जगह निश्चित तौर पर रमनदीप को चुना जाना चाहिए। मगर यह नियम का ही लूप होल है जिसका फायदा भारतीय टीम ने उठाया। लेकिन ये खेल भावना के भी बिल्कुल विपरीत था क्योंकि क्रिकेट को हम एक जेंटलमैन गेम के रूप में जानते हैं। इसलिए इंग्लैंड के कप्तान और पूर्व खिलाड़ियों का विरोध बिल्कुल जायज है। क्योंकि अगर हर्षित राणा ना खेल रहे होते तो शायद इंग्लैंड उस मैच में टॉप पर होती क्योंकि हर्षित राणा ने अपने 4 ओवर के स्पेल में 33 रन देकर 3 महत्वपूर्ण खिलाड़ियों को आउट किया था।
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इस फैसले को ना तो सही कहा जा सकता है और ना ही बेइमानी, चालाकी की संज्ञा में जरूर आ सकता है। एक बार पहले भी विवाद हुआ था जब रविन्द्र जडेजा की जगह कनकशन सब्स्टीट्यूट के तौर पर चहल को टीम में शामिल किया गया लेकिन उसमें भी रविन्द्र जडेजा ऐसे ऑलराउंडर है जो सिर्फ एक गेंदबाजी के तौर पर भी टीम में शामिल हो सकते हैं। आइसीसी को इस नियम पर फिर से सोच विचार करने की जरूरत है, नियम ऐसे बने जिसका कोई लूप होल न निकाल सके।