पटना : रेलवे की टिकट बुकिंग व्यवस्था को लेकर एक यात्री समी अहमद ने आरोप लगाया है। उन्होंने खुद अपना अनुभव साझा किया है- 18 अगस्त की सुबह 8:00 से पहले मैं आईआरसीटीसी (IRCTC) की वेबसाइट पर लॉगिन करके बैठा था। आठ बज कर कुछ सेकंड में टिकट बुक करने का विकल्प आया। उससे पहले यह विकल्प काम नहीं कर रहा था। मैं वाई-फाई की तेज कनेक्टिविटी पर भरोसा किए हुआ था। मुझे पैसेंजर का नाम और दूसरी बातें भी भरने की जरूरत नहीं थी क्योंकि सभी जरूर जानकारी मेरे पैसेंजर लिस्ट में पहले से शामिल थी। टिकट बुक करने के लिए जब भुगतान की बारी आई तो लगातार ‘ट्रांजैक्शन इन प्रोग्रेस’ का चक्का घूमता रहा। करीब 3 मिनट के बाद ‘एक्सेस डिनाइड’ का मैसेज मिला और आईआरसीटीसी का विंडो बंद हो गया।
मुझे मेरे ईमेल पर टिकट तो मिल गया लेकिन वेटिंग लिस्ट 265 लिखा हुआ मिला। यह नॉर्मल टिकट था जबकि ऐसी शिकायत आमतौर पर तत्काल टिकट में सुनने को मिलती है। मैंने इसके लिए आईआरसीटीसी और रेल मंत्री के अलावा दूसरे संबंधित एक्स हैंडल पर शिकायत की लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिला।
दरअसल 19 अक्टूबर से दिल्ली विश्वविद्यालय में ऑटम ब्रेक है। इसके आसपास ही दिवाली और छठ भी है। ऐसे में यह बात तो समझ में आती है कि टिकट लेने वालों की संख्या बहुत रही होगी। लेकिन इसकी कोई पारदर्शी व्यवस्था तो होनी चाहिए और आईआरसीटीसी की लेट लतीफी की वजह से उस आदमी को वेटिंग लिस्ट वाला टिकट क्यों मिलना चाहिए जिसने समय पर अपनी तरफ से हर तैयारी कर रखी थी।
इस टिकट को लेने के लिए मैंने एक दिन पहले से तैयारी की थी ताकि यह मालूम हो सके कि 17 अक्टूबर का टिकट किस तारीख से मिल सकेगा। टिकट लेने के लिए अधिकतम 60 दिन की बंदिश के हिसाब से 17 अक्टूबर का टिकट 18 अगस्त की सुबह आठ बजे से पहले बुक नहीं किया जा सकता था। मुझे यह समझ में नहीं आया कि सारी तैयारी, तेज कनेक्टिविटी और समय का पूरा पालन करने के बावजूद दो महीने के बाद का टिकट 265 वेटिंग लिस्ट के साथ क्यों मिला। जिन लोगों को कंफर्म टिकट मिला होगा उन्होंने आखिर क्या अजूबा किया होगा? आखिर ‘ट्रांजैक्शन इन प्रोग्रेस’ की दिक्कत आईआरसीटीसी की है तो इसका खामियाजा मुझे क्यों भुगतना पड़े?
17 अक्टूबर के दिल्ली से पटना के रेल टिकट के लिए 18 अगस्त को मिली नाकामी के बाद मैंने 19 अगस्त को फिर टिकट लेने की कोशिश की। इस बार 18 अक्टूबर के लिए। चूंकि संपूर्ण क्रांति में बर्थ कम रहती है और तुलनात्मक रूप से किराया कम होने की वजह से इसमें मारामारी ज्यादा होती है तो मैंने तेजस राजधानी में कोशिश की। लेकिन इस बार का अनुभव और बुरा रहा। सुबह 8ः00 बजे बुकिंग के लिए क्लिक किया तो सामने एक मेसेज आया कि बुकिंग अभी शुरू नहीं हुई है। 8ः01, 8ः02 और 8ः03 बजे भी यही मेसेज मिला। इसके बाद क्लिक करने पर हमें पीछे ले जाया गया और आईआरसीटीसी का विंडो गोल चक्कर काटने लगा और फिर बंद हो गया। दोबारा लॉगिन किया तो सारे टिकट ख़त्म। वेटिंग लिस्ट 65 मिला। मैंने इस बार टिकट बुक नहीं किया। इस बारे में भी मैंने आईआरसीटीसी से एक्स हैंडल पर सवाल किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। और ग्यारह बजते बजते रिग्रेट आ गया।
जब मैंने इसके बारे में और जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो मालूम हुआ कि बहुत से लोगों को तो ‘रिग्रेट’ का संदेश मिला। मैंने संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस से टिकट बुक करने की कोशिश की थी। यह अजीब बात है कि टिकट बुक करने से पहले थर्ड एसी में 176 सीट दिख रही थी। इस ट्रेन में अगर थर्ड एसी की कम से कम पांच बोगी भी मान ली जाए तो कुल 360 बर्थ उपलब्ध होनी चाहिए। इसका मतलब है कि 184 बर्थ यानी आधी से ज्यादा बर्थ पहले से ही आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होती है।
थोड़ी देर बाद जब मैंने दूसरी ट्रेनों का हाल देखा तो पटना ही नहीं गया और मुजफ्फरपुर आने के लिए भी दिल्ली की सारी ट्रेनों में या तो वेटिंग था या रिग्रेट लिखा था। यह बात भी ध्यान देने की है कि रेलवे अक्सर कम पैसे पर टिकट देने का दावा करती है लेकिन दो-दो महीने पहले लोगों को टिकट बुक करना पड़ता है तो इस दौरान सूद कमाने की बात आईआरसीटीसी क्यों नहीं बताता है।
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रेल मंत्रालय की ओर से यह सफाई दी जाती है कि यात्रियों की सुविधा के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं लेकिन सवाल यह है कि जो आम ट्रेन है उसमें आखिर ऐसा क्या हो जाता है कि आम लोगों के लिए टिकट लेना मुश्किल हो जाता है। आईआरसीटीसी और रेल मंत्रालय ने पिछले दिनों इस व्यवस्था को ठीक करने का वादा किया था और तत्काल टिकट के लिए आधार को जरूरी करार दिया था। जब जनरल टिकट इतनी मुश्किल से मिल रहा है तो तत्काल टिकट के लिए जो मारामारी होती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
इसके बाद मैंने दिल्ली से पटना के लिए फ्लाइट का टिकट देखना शुरू किया। मुझे दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वह बात याद आई कि वह ऐसी व्यवस्था करेंगे जिसमें हवाई चप्पल वाले भी हवाई सफर कर सकेंगे। यह बात तो पता थी कि दुर्गा पूजा और दिवाली-छठ के समय बिहार आने के लिए फ्लाइट का किराया ₹20000 तक पहुंच जाता है लेकिन उससे दो महीने पहले भी फ्लाइट का टिकट इतना महंगा मिल रहा है कि हवाई चप्पल वाले क्या जूते वालों के लिए भी सफर करना मुश्किल होगा। अगर ट्रेन की बर्थ के लिए ₹1300 में टिकट मिलता है तो इसे छोड़कर हर कोई ₹6000 का हवाई जहाज का टिकट तो नहीं ले सकता।
इत्तेफाक की बात है कि आज के ही अखबारों में डबल इंजन सरकार की ओर से पूरे पेज का विज्ञापन आया है जिसमें बिहार सरकार ने खुद को हर सफर का हमसफर बताया है। इसमें दुर्गा पूजा, दिवाली, छठ और होली जैसे पर्व त्यौहार के सीजन में भीड़भाड़ से मुक्ति दिलाने की बात कहते हुए यह संदेश दिया गया है कि त्योहारों पर घर आना हुआ बिलकुल आसान। चुनाव से ठीक पहले यह ऐलान करने की वजह तो समझ में आती है लेकिन हर आदमी के लिए ट्रेन छोड़कर बस से सफर करना मुश्किल है। असली सवाल यह है कि आईआरसीटीसी की टिकट बुकिंग इतनी अपारदर्शी क्यों है और इसमें धांधली की शिकायत कब खत्म होगी?






















