[Team insider] ट्राइबल यूनिवर्सिटी से संबंधित विधेयक राज्य सरकार को वापस कर राजभवन ने सरकार से एक और मोर्चा खोल दिया है। इसके पहले भी कई ऐसे मौके आये हैं, जिसमें हेमन्त सरकार को असहज किया है। जिसकी वजह से राजभवन और हेमन्त सरकार के बीच रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। द्रौपदी मुर्मू के जाने के बाद पिछले साल जुलाई महीने में रमेश बैस झारखंड के राज्यपाल बने। उसके बाद से ही वे रेस हैं। आये दिन सरकार के काम-काज को लेकर उंगली दिखाने का काम करते रहते हैं। हेमन्त सरकार के हाल के अनेक फैसले वोटरों को प्रभावित करने वाले रहे मगर राज्यपाल की आपत्ति उनमें बाधा बनती रही।
हिंदी और अंग्रेजी के विधेयक में है अंतर
अभी राजभवन ने पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विवि विधेयक को दस आपत्तियों के साथ राज्य सरकार को वापस कर दिया। दलील है कि हिंदी और अंग्रेजी के विधेयक में अंतर है। विधानसभा से 23 दिसंबर को हेमन्त सरकार ने देश के दूसरे ट्राइबल यूनिवर्सिटी के संबंध में प्रस्ताव पास कराया था। जनजातीय आबादी के हित में लिये गये बड़े निर्णय के रूप में इसे पेश किया गया, मार्केटिंग की गई।
स्थानीय नीति और भाषा को लेकर पहले से बवाल
हालांकि पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने ट्राइबल यूनिवर्सिटी के संबंध में राज्य सरकार को परामर्श दिया था। विधानसभा में विधेयक पर पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि अनेक राज्यों ने अपनी भाषा संस्कृति को संरक्षण दिया है उसी को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। इसमें जनजातीय समाज विज्ञान, भाषा, संस्कृति, कला और वन आधारित आर्थिक गतिविधियों आदि के अध्यापन, शोध की गुंजाइश देखी गई। बता दें कि स्थानीय नीति और भाषा को लेकर झारखंड में पहले से बवाल है। धनबाद और बोकारो जिले में जिला स्तरीय नियुक्ति में भोजपुरी और मगही को शामिल करने और फिर हटाने पर विवाद जारी है। लहर दूसरे जिलों में भी फैल रही है।
राज्यपाल ने संशोधित नियमावली को ही असंवैधानिक करार दिया
राजभवन ने इसके पहले ट्राइबल एडवाजरी काउंसिल के गठन संबंधी नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए राज्य सरकार को वापस कर दिया था। कानूनी जानकारों से रायशुमारी के बाद इसे वापस किया गया। इस नियमावली को लेकर पहले से बवाल मचा हुआ था। पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के समय ही यह संशोधन किया गया था। दरअसल मुर्मू ने दो सदस्यों के मनोनयन पर अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए आपत्ति जतायी तो सरकार ने नियमावली में ही परिवर्तन करते हुए राज्यपाल को मनोनयन की प्रक्रिया से बाहर कर दिया। द्रौपदी मुर्मू ने इसकी फाइल राजभवन मंगवाई। कोई आपत्ति लिखित रूप में जतातीं, इसके पहले ही वे चली गईं।
टीएसी के निर्णयों पर भी विवाद के रास्ते खुल गये
राज्यपाल रमेश बैस ने टीएसी की संशोधित नियमावली को ही असंवैधानिक करार दिया है। ऐसे में टीएसी के निर्णयों पर भी विवाद के रास्ते खुल गये हैं। हेमन्त सरकार में शामिल कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष और टीएसी के सदस्य बंधु तिर्की भी कह चुके हैं कि राज्य सरकार को टीएसी पर राज्यपाल की सलाह को मान लेना चाहिए। इसी टीएसी के माध्यम से हेमन्त सरकार ने जनगणना में आदिवासी धर्म कोड का विधानसभा से सर्वसम्मत पारित प्रस्ताव राजभवन भेजा था।
धर्म कोड वोट की राजनीति का बड़ा मुद्दा
धर्म कोड वोट की राजनीति का बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ये मामले चल ही रहे थे कि राजभवन की नजर मॉब लिंचिंग विधेयक पर गड़ गई है। राजभवन इसकी समीक्षा कर रहा है। राजभवन सूत्रों के अनुसार कानून विदों की राय के बाद राज्यपाल इस पर निर्णय करेंगे। बता दें कि मॉब लिंचिंग को लेकर विधानसभा चुनाव के पहले विपक्ष ने रघुवर सरकार को घेरा था और झारखंड को देश में लिंचिंग पैड के रूप में प्रचारित किया था।
भाजपा ने विधानसभा में जमकर किया था विरोध
भाजपा ने विधानसभा में इसके प्रावधानों का जमकर विरोध किया था। भाजपा की अनुपस्थिति में ही इसे सदन से पास किया गया। बाद में भाजपा ने राज्यपाल से मिलकर इसे असंवैधानिक बताते हुए मंजूरी न देने का अनुरोध किया। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि हेमन्त सरकार के उपरोक्त फैसले वोट बैंक को मजबूत करने की राजनीति का हिस्सा रहे। ऐसे में मुख्यमंत्री को किरकिरी लगेगी ही।
रमेश बैस लगातार दिखा रहे हैं अपनी सक्रियता
बात यहीं तक सीमित नहीं है, रमेश बैस जब से राज्यपाल बने लगातार अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं। सिमडेगा में पिछले माह पूरे गांव और पुलिस वालों की मौजूदगी में एक युवक की हत्या कर जला देने का मामला सामने आया तो राज्यपाल ने डीजीपी नीरज सिन्हा को राजभवन तलब कर लिया।
विश्वविद्यालयों में रिक्त पड़े पदों को लेकर इसी माह झारखंड लोक सेवा आयोग के अध्या को बुलाकर नाराजगी जाहिर की थी। सिविल सेवा परीक्षाओं के विवाद और उठे सवाल पर भी बिंदुवार जवाब मांगा था। उत्पाद नीति को लेकर भी फाइल मांगी थी। आये दिन राजभवन का हस्तक्षेप होता रहता है जो हेमन्त सरकार को सूट नहीं कर रहा है। और भीतर ही भीतर राजभवन और सरकार के बीच तीखापन बढ़ता जा रहा है।