साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आज इस आपातकाल को 49 साल पूरे हो गए। भाजपा आज इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मन रही है तो केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी ‘आपातकाल’ के दिनों को याद करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने एक्स पर लंबा पोस्ट लिखा है।
25 जून 1975 – भारतीय लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला। आज का दिन भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का वह काला अध्याय याद दिलाता है, जब सत्ता की लालसा में संविधान को कुचल दिया गया था। आपातकाल की घोषणा कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीना गया, न्यायपालिका को नियंत्रित किया गया, संविधान की आत्मा को घायल कर दिया गया, और लाखों निर्दोष नागरिकों को जेलों में ठूंसा गया। यह वही दिन था जब कांग्रेस ने साबित कर दिया कि उसके लिए लोकतंत्र, संविधान और नागरिक अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण केवल सत्ता है।
मैंने बचपन में अपने पिता श्रद्धेय रामविलास पासवान जी से आपातकाल की भयावह कहानियाँ सुनी हैं — किस प्रकार उन्हें और देश के अन्य लोगों को अन्यायपूर्वक जेल भेज दिया गया। पापा उस वक्त लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में चल रहे जेपी आंदोलन में युवा नेता के रूप में सक्रिय थे। उन्होंने आपातकाल के खिलाफ खुले तौर पर विरोध जताया, जिसके चलते उन्हें मीसा एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 17 महीने से अधिक जेल में रहना पड़ा।
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श्रद्धेय रामविलास पासवान जी का आपातकालीन संघर्ष, केवल सत्ता के दमन के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह लोकतंत्र, संविधान और कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा का प्रतीक था। उनका यह योगदान आने वाली पीढ़ियों को संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता रहेगा।
आज अधिकांश राजनीतिक दल और राजनेता जो खुद को जेपी का अनुयायी कहते है वो तथाकित इंडी गठबंधन के साथ जुड़े हुए है। इन सभी नेताओं ने आपातकाल की प्रताड़ना को झेला है। इन्हीं लोगों ने जेपी आंदोलन में सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था और ये नारा कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए था। आज वही लोग अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए कांग्रेस के नेतृत्व से जुड़े हुए है।
आज मैं उन सभी सेनानियों को नमन करता हूं और इस संघर्ष में बलिदान देने वाले सभी वीरों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं । जिन्होंने अत्याचार सहकर भी लोकतंत्र की रक्षा की। उनका संघर्ष ही हमारी आज़ादी और संविधान की जीवंतता का आधार है।