लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और गंभीर आपराधिक मामलों में फंसे मंत्रियों को पद से हटाने संबंधी तीन विधेयक पेश किए जाने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। इस विधेयक को लेकर जहां भाजपा इसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में उठाया गया कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला करार दे रहा है।
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने इस प्रस्ताव पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि सरकार इस बिल के जरिए नागरिकों के मानक अधिकार छीनना चाहती है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकतंत्र को कमजोर करना ही मौजूदा शासन का असली उद्देश्य है। बिहार में SIR लागू करने का उदाहरण देते हुए सिब्बल ने कहा कि जिस तरह से वोटर लिस्ट तैयार हो रही है, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि विपक्षी नेताओं पर एफआईआर होते ही तुरंत गिरफ्तारी क्यों होती है, जबकि सत्ता पक्ष के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती।
इसी मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि यह विधेयक विपक्षी सरकारों के लिए “मौत का वारंट” है। उनका कहना था कि विपक्षी दलों के नेताओं पर ईडी और सीबीआई की जांच थोपकर इस्तीफे की मांग की जाएगी, जिससे विपक्ष-विहीन भारत बनाने की साजिश पूरी हो सके। उन्होंने भरोसा जताया कि राज्यसभा में यह प्रस्ताव खारिज हो जाएगा।
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वहीं, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पलटवार करते हुए कहा कि अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री जेल में बंद है तो क्या उसे संवैधानिक पद पर बने रहना चाहिए? उन्होंने अरविंद केजरीवाल का नाम लेते हुए कहा कि जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री बने रहना लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ खिलवाड़ है। दुबे ने अतीत के उदाहरण देते हुए कहा कि लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती जैसे नेताओं ने भी मुकदमे के दौरान पद से इस्तीफा देकर राजनीतिक शुचिता का पालन किया था।
भाजपा नेता संजय जायसवाल ने भी विपक्ष पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा नहीं करना चाहता था ताकि ऑनलाइन गेमिंग बिल लोकसभा में पास न हो सके। जायसवाल का दावा था कि ऑनलाइन जुए से जुड़ी कंपनियों ने विपक्षी दलों को करोड़ों रुपये का चंदा दिया है, इसलिए वे बाधा डाल रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विधेयक सिर्फ विपक्ष के खिलाफ नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के मंत्रियों पर भी लागू होगा।
इधर, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने संबंधी तीन विधेयक पेश किए जाने पर कहा, “इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति में भेजा गया है। इस बिल के जो प्रावधान है अगर इसके पीछे कोई गलत नीयत न हो तो ये प्रावधान बिलकुल ठीक है क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि अगर आप संवैधानिक पद पर हैं और आप पर कोई आरोप लग जाए जिससे आप 2-4 महीने जेल में हैं तो जेल में रहकर आप सत्ता तो चला नहीं सकते हैं इसलिए ये प्रावधान होना चाहिए।






















