Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में सीमांचल की 24 सीटें सबसे अहम कड़ी साबित होने वाली हैं। यह वह इलाका है जहां हर चुनाव में वोट बैंक की राजनीति अपने चरम पर दिखती है, लेकिन इस बार बाढ़, पलायन और रोजगार जैसे मुद्दे मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा एजेंडा बनकर उभरे हैं। पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज के इन चुनावी क्षेत्रों में इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन ओवैसी की एआईएमआईएम और प्रशांत किशोर के जन सुराज ने चुनावी समीकरणों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है।
सीमांचल के मतदाताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती विकास और पलायन की है। हालांकि पूर्णिया एयरपोर्ट शुरू होना और रेल कनेक्टिविटी बेहतर होना विकास के नए संकेत हैं, लेकिन उच्च शिक्षा और रोजगार के अभाव में युवाओं का पलायन अब भी जारी है। इस इलाके की 80 फीसदी आबादी की आजीविका खेती-बाड़ी और पशुपालन पर निर्भर है, जहां मक्का और मखाना ने किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया है। इथेनॉल प्लांट लगने से मक्के की मांग बढ़ी है, लेकिन किसान अभी भी एमएसपी और खाद-बीज की किल्लत जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
इन चुनौतियों के बीच सीमांचल की सभी 24 सीटों पर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने दावे पेश किए हैं। पूर्णिया के धमदाहा से जदयू की मंत्री लेशी सिंह एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं, जबकि अररिया की सिकटी सीट से भाजपा के मंत्री विजय कुमार मंडल अपनी सीट बचाने की कोशिश में जुटे हैं। कटिहार सदर से पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद का इस बार वीआईपी के सौरभ अग्रवाल से सीधा मुकाबला है, जो इस सीट के लिए एक नया और दिलचस्प मोड़ लेकर आया है।
अररिया की जोकीहाट सीट पर इस बार दो भाइयों के बीच राजनीतिक जंग देखने को मिल रही है। राजद के शहनवाज आलम और जन सुराज के सरफराज आलम एक ही परिवार से होने के बावजूद अलग-अलग दलों के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसने इस सीट के समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है। कदवा सीट से जदयू के दुलाल चंद गोस्वामी और कांग्रेस के शकील अहमद खान के बीच आमने-सामने की लड़ाई है।
सीमांचल के कोढ़ा, प्राणपुर, मनिहारी, बलरामपुर और बारसोई जैसी सीटों पर भी एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। किशनगंज की चारों सीटों पर भी दोनों महागठबंधनों के बीच जंग जारी है, लेकिन एआईएमआईएम और जन सुराज के प्रभाव ने इन सीटों पर अनिश्चितता का माहौल बना दिया है।
पिछले चुनाव में सीमांचल की 24 सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटें बराबर बंटी थीं, लेकिन इस बार नए राजनीतिक दलों के प्रवेश और मतदाताओं के बदलते रुझान ने इस क्षेत्र के चुनावी समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है। 11 नवंबर को होने वाले मतदान के बाद ही साफ हो पाएगा कि सीमांचल के मतदाताओं ने विकास के मुद्दों को तरजीह दी या फिर वोट बैंक की राजनीति ने एक बार फिर अपना जादू चलाया।






















