Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक बार फिर पुराने रिश्तों की गूंज सुनाई दे रही है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने पूर्व सांसद डॉ. रंजन प्रसाद यादव को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नियुक्त किया है। यह निर्णय पार्टी के भीतर और बाहर चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि रंजन यादव कभी लालू यादव के सबसे करीबी रहे थे, फिर उनके सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बन गए और अब एक बार फिर से RJD के प्रमुख नेताओं में शामिल हो गए हैं।
रंजन यादव का राजनीतिक सफर: विश्वासघात से वापसी तक
रंजन यादव ने बिहार की राजनीति में अपनी पहचान एक शिक्षाविद और कुशल रणनीतिकार के रूप में बनाई। लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में उन्होंने बिना किसी औपचारिक पद के शिक्षा नीति और नौकरशाही पर गहरा प्रभाव रखा।
जब जनता दल का विभाजन हुआ और RJD का गठन हुआ, तो रंजन यादव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन जल्द ही उन पर मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने के आरोप लगे, जिसके बाद लालू यादव ने उन्हें पद से हटा दिया। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया और रंजन यादव ने JDU का दामन थाम लिया।
2009 का चुनावी टकराव और RJD में वापसी
2009 के लोकसभा चुनाव में रंजन यादव ने पाटलिपुत्र सीट पर लालू यादव को हराकर राजनीतिक इतिहास रच दिया था। वह JDU के टिकट पर NDA के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। इस हार ने लालू यादव के राजनीतिक करियर को गहरा झटका दिया था, क्योंकि यह उनका आखिरी लोकसभा चुनाव साबित हुआ। उसके बाद चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के कारण लालू यादव चुनावी राजनीति से बाहर हो गए।
लेकिन अब समय बदला है। 2024 में रंजन यादव RJD में शामिल हुए और अब उन्हें पार्टी की सर्वोच्च निर्णयात्मक समिति में जगह मिली है। यह नियुक्ति साबित करती है कि लालू यादव ने पुराने मतभेदों को भुलाकर एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है।