नई दिल्ली : कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भारत सरकार द्वारा जारी की गई हालिया जनगणना अधिसूचना पर गंभीर सवाल उठाए हैं। हुड्डा ने कहा कि इस अधिसूचना में सामाजिक-आर्थिक संकेतकों की विस्तृत जानकारी शामिल नहीं है, जो 2011 की जनगणना से बहुत अलग नहीं है। उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार द्वारा अपनाए गए मॉडल का उदाहरण देते हुए मांग की कि भारत सरकार को भी इसी तर्ज पर एक विस्तृत अधिसूचना जारी करनी चाहिए, ताकि नीति निर्माण के लिए सही डेटा उपलब्ध हो सके।
हुड्डा ने कहा, “हमने मांग की थी कि तेलंगाना की तर्ज पर, जहां रेवंत रेड्डी सरकार ने सभी सामाजिक-आर्थिक संकेतकों की जानकारी एकत्र की, भारत सरकार को भी एक विस्तृत अधिसूचना जारी करनी चाहिए। लेकिन सरकार ने हमारी इस मांग को स्वीकार नहीं किया।” उन्होंने आगे कहा कि सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना 2011 की जनगणना से बहुत अलग नहीं है, और अब यह देखना होगा कि आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।
दीपेंद्र सिंह हुड्डा, जो रोहतक से पांच बार के सांसद हैं, ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण और कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन से जोड़ा। उन्होंने कहा कि सही डेटा के अभाव में कई कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी इससे वंचित रह जाते हैं।
इस बीच, तेलंगाना में रेवंत रेड्डी की सरकार ने सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत सर्वेक्षण का एक व्यापक मॉडल अपनाया है, जो अन्य राज्यों और केंद्र सरकार के लिए एक उदाहरण के रूप में सामने आया है। हुड्डा का बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि विपक्षी दल जनगणना के माध्यम से अधिक पारदर्शी और समावेशी नीतियों की मांग कर रहे हैं।
यह मुद्दा भारतीय राजनीति में संघवाद और राज्य की स्वायत्तता की बहस को भी तूल दे रहा है, जहां राज्य सरकारें नवाचार के जरिए राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित कर रही हैं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा की पृष्ठभूमि, जिसमें इंजीनियरिंग, बिजनेस और लॉ की डिग्री शामिल है, उन्हें तकनीकी और कानूनी दृष्टिकोण से सरकारी निर्णयों की आलोचना करने में सक्षम बनाती है।
यह विकास राष्ट्रीय स्तर पर डेटा-चालित शासन और विपक्षी दलों की भूमिका पर चल रही बहस के बीच आया है, जहां सटीक जनसंख्या और आर्थिक डेटा नीति निर्माण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।