किशनगंज जिले की (Kochadhaman Vidhan Sabha) कोचाधामन विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 55) बिहार की राजनीति में बेहद अहम मानी जाती है। यह सीट नए परिसीमन के बाद वर्ष 2010 में अस्तित्व में आई थी। तब से अब तक यह क्षेत्र लगातार सियासी हलचलों और बदलते समीकरणों का गवाह बना हुआ है। कोचाधामन प्रखंड की सभी 24 पंचायतों और किशनगंज प्रखंड की छह पंचायतों को मिलाकर इस विधानसभा का गठन हुआ। इससे पहले यह क्षेत्र किशनगंज विधानसभा के अंतर्गत आता था।
चुनावी इतिहास
2010 में पहली बार जब यह सीट अस्तित्व में आई तो आरजेडी के अख्तरुल ईमान ने यहां जीत दर्ज की। हालांकि उनके इस्तीफे के बाद 2014 के उपचुनाव में जेडीयू के मुजाहिद आलम ने अपनी किस्मत आजमाई और बाज़ी मारी। 2015 के विधानसभा चुनाव में भी मुजाहिद आलम ने जीत का परचम लहराया। लेकिन 2020 में यहां सियासी तस्वीर पूरी तरह बदल गई। एआईएमआईएम उम्मीदवार मोहम्मद इज़हार अस्फी ने जनता दल यूनाइटेड के कद्दावर नेता मुजाहिद आलम को 36,143 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी। अस्फी को 79,893 वोट मिले, जबकि मुजाहिद आलम को 43,750 वोटों पर संतोष करना पड़ा। राजद के मोहम्मद शाहिद आलम भी 43,750 वोटों के साथ पीछे रह गए।
जातीय समीकरण और चुनावी असर
कोचाधामन विधानसभा का चुनावी भविष्य मुख्य रूप से मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर करता है, जिनकी यहां निर्णायक भूमिका है। मुस्लिम आबादी का दबदबा यहां हर चुनाव में स्पष्ट दिखाई देता है। यादव समुदाय भी यहां महत्वपूर्ण संख्या में मौजूद है और उनका समर्थन किसी भी उम्मीदवार के लिए जीत की कुंजी बन सकता है। यह समीकरण इस सीट को बिहार की राजनीति में और भी दिलचस्प बना देता है।
विकास बनाम चुनौतियाँ
कोचाधामन की 90% आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है। हर साल आने वाली बाढ़ और कटाव की समस्या यहां के लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। ऐसे में विकास, बुनियादी सुविधाएं, और रोजगार जैसे मुद्दे हमेशा चुनावी बहस के केंद्र में रहते हैं। जनता चाहती है कि सिर्फ जातीय समीकरण नहीं, बल्कि क्षेत्र की समस्याओं का ठोस समाधान भी चुनावी एजेंडे का हिस्सा बने।
Kishanganj Vidhan Sabha : मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस बनाम AIMIM.. भाजपा भी मैदान में
2025 की राह
2025 के विधानसभा चुनाव में कोचाधामन सीट पर फिर से कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। मुस्लिम वोट बैंक को साधने की होड़ तो होगी ही, लेकिन साथ ही विकास के सवाल भी राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एआईएमआईएम अपना गढ़ बचा पाती है या फिर जेडीयू और राजद जैसे दल यहां वापसी करने में सफल होते हैं।






















