रांची: झारखंड में जमीन सर्वे को पूरा करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर आज झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। एक्टिंग चीफ जस्टिस की बेंच के समक्ष हुई इस सुनवाई में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि लैंड सर्वे के लिए पड़ोसी राज्य बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से तकनीकी जानकारियां हासिल की जा रही हैं।
याचिकाकर्ता गोकुल चंद की ओर से दायर याचिका में उल्लेख किया गया है कि झारखंड में पहला जमीन सर्वे 1932 में हुआ था, जबकि 1980 में इस प्रक्रिया को फिर से शुरू किया गया। हालांकि, धनबाद जिले को छोड़कर राज्य के शेष जिलों में अभी तक सर्वे पूरा नहीं हो सका है। हाईकोर्ट ने सरकार को आठ महीने के भीतर सर्वे पूरा करने का आदेश दिया था, लेकिन पुरानी तकनीक और स्टाफ की कमी के कारण यह प्रक्रिया 1975 से ठप पड़ी थी।
सरकार ने कोर्ट को बताया कि अब तक केवल दो जिलों में सर्वे पूरा हो पाया है, जबकि शेष क्षेत्रों के लिए छह महीने का समय और लगने का अनुमान है। इस देरी को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि आधुनिक जीआईएस (GIS) तकनीक के उपयोग से प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है, जैसा कि जर्नल ऑफ लैंड यूज साइंस (2018) में प्रकाशित अध्ययनों में सुझाया गया है। इससे न केवल सटीक रिकॉर्ड तैयार होगा, बल्कि सरकारी और वन भूमि की अवैध खरीद-फरोख्त पर भी अंकुश लगेगा।
याचिकाकर्ता के अनुसार, सर्वे पूरा होने से भूमि स्वामित्व को लेकर चल रहे विवादों में भी कमी आएगी, जो राज्य में हजारों लोगों को प्रभावित करते हैं। ब्रिटिश काल में शुरू हुए कैडेस्ट्रल सर्वे की तर्ज पर, स्थानीय विरोध और तकनीकी सीमाओं के कारण ऐसी परियोजनाओं में देरी आम रही है, लेकिन आधुनिक तकनीक इसे बदल सकती है।
हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर 2025 को निर्धारित की है। इस बीच, सरकार को सर्वे प्रक्रिया को गति देने और तकनीकी सहायता के लिए अन्य राज्यों के अनुभव का लाभ उठाने की उम्मीद है। यह कदम झारखंड के लिए न केवल प्रशासनिक सुधार का अवसर है, बल्कि राज्य की प्रगति और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।