लोकसभा में बुधवार को राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ (Vande Mataram) के 150 वर्ष पूरे होने पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक तापमान अचानक बढ़ गया। राष्ट्रीय भावना, लोकतांत्रिक परंपराओं और चुनाव सुधार जैसे मुद्दों पर सरकार और विपक्ष एक-दूसरे के सामने खड़े दिखाई दिए। जहां भाजपा ने ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय एकता और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक बताया, वहीं विपक्ष ने कहा कि चर्चा का उद्देश्य किसी पर दबाव बनाना नहीं बल्कि लोकतांत्रिक सुधारों को मजबूत करना होना चाहिए।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने कहा कि वंदे मातरम देश की आत्मा है और इसे प्यार से बोलने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरा देश इसे गर्व से बोलता है और उम्मीद है कि संसद के सभी सदस्य भी इसे प्रेम से स्वीकार करेंगे। शाहनवाज़ हुसैन के अनुसार, यह केवल राष्ट्रगीत का मुद्दा नहीं बल्कि भावनात्मक एकता और लोकतंत्रीय मूल्यों की रक्षा से जुड़ा विषय है।
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इसी बीच बिहार भाजपा अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री दिलीप जायसवाल ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि लोकतंत्र को कमजोर करने वाले लोगों को जनता कभी स्वीकार नहीं करती। उन्होंने कहा कि देश की परंपरा, राष्ट्रगान, वंदे मातरम और कश्मीर में ‘एक राष्ट्र, एक विधान और एक झंडा’ की अवधारणा हमारे गौरव का हिस्सा है और इसे कोई भी राजनीतिक दल तुष्टीकरण की राजनीति के नाम पर खत्म नहीं कर सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष के पास केवल धार्मिक और सामाजिक विभाजन की राजनीति बची है।
वहीं राजद सांसद मनोज कुमार झा ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि पिछला पूरा सत्र सरकार की वजह से बाधित हुआ जबकि विपक्ष केवल चर्चा की मांग कर रहा था। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधार और EVM पारदर्शिता के मुद्दे पर विपक्ष ने पहले निर्वाचन आयोग और फिर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद समावेश बढ़ा है लेकिन अब आवश्यकता इस बात की है कि सिस्टम बहिष्करण नहीं बल्कि समावेशन पर आधारित हो।






















