बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) में बाहुबली उम्मीदवारों और उनके परिवारों का प्रभाव एक बार फिर स्पष्ट रूप से देखने को मिला। राज्य की 243 सीटों में से 15 सीटों पर सीधे तौर पर बाहुबली या उनके परिजनों ने मैदान में उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय और कई जगह बेहद रोचक बना दिया। इनमें 8 उम्मीदवार एनडीए से और 7 महागठबंधन की तरफ से चुनावी रणभूमि में उतरे थे। नतीजों ने एक बार फिर साबित किया कि बिहार की राजनीति में जनाधार और स्थानीय प्रभाव अभी भी चुनावी समीकरणों को गहराई से प्रभावित करते हैं।
सबसे चर्चित सीटों में मोकामा का नाम सबसे ऊपर रहा, जहां बाहुबली छवि वाले जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह जेल में रहते हुए भी 28 हजार से अधिक वोटों के अंतर से विजयी हुए। यह नतीजा इस बात का प्रमाण है कि उनके क्षेत्र में पकड़ आज भी मज़बूत है। अनंत सिंह ने अपने पुराने प्रतिद्वंदी सूरजभान सिंह की पत्नी और राजद उम्मीदवार वीणा देवी को मात देकर चुनावी पटल पर जोरदार वापसी की। मोकामा का यह नतीजा अब राज्यभर में राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन गया है।
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रघुनाथपुर सीट पर दिवंगत बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा ने चुनावी मैदान में धमाकेदार जीत दर्ज की। शुरुआती रुझानों से ही ओसामा बढ़त बनाए हुए थे, जिसे उन्होंने अंत तक कायम रखा। यह जीत न सिर्फ शहाबुद्दीन परिवार की राजनीतिक विरासत को मजबूत करती है, बल्कि राजद खेमे को भी एक बड़ी राहत देती है।
कुचायकोट में जदयू के अमरेंद्र कुमार ने मजबूत मुकाबले के बीच जीत हासिल कर एनडीए के भीतर नई ऊर्जा भर दी। वहीं वारिसलीगंज से अशोक महतो की पत्नी और राजद प्रत्याशी अनीता देवी विजयी रहीं, जिसने यह संदेश दिया कि बाहुबली परिवारों का जनाधार अभी भी वोटरों के बीच प्रभावी है।
दूसरी ओर, लालगंज सीट पर महागठबंधन को करारा झटका लगा, जहाँ राजद प्रत्याशी शिवानी शुक्ला चुनाव हार गईं। ब्रहमपुर में लोजपा (आर) प्रत्याशी हुलास पांडेय को भी हार का सामना करना पड़ा। दानापुर में बीजेपी उम्मीदवार रामकृपाल यादव ने 29 हजार वोटों से रीतलाल यादव को शिकस्त देकर एनडीए का पलड़ा और भारी कर दिया।
तरारी में बीजेपी उम्मीदवार विशाल प्रशांत ने बढ़त बनाए रखी, जबकि कई सीटों पर बाहुबली परिवारों के उम्मीदवारों की मौजूदगी ने मुकाबले को और रोचक बना दिया। मांझी से रणधीर सिंह की जीत भी एनडीए के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रही। इन सभी नतीजों ने राज्य की चुनावी राजनीति में यह संकेत और मजबूत कर दिया कि बाहुबली छवि वाले नेताओं का प्रभाव आज भी समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि उनका नेटवर्क, स्थानीय पकड़ और समाज के कुछ वर्गों में स्वीकार्यता उन्हें जीत दिलाने में सक्षम है।






















