गया जिले की गुरुआ विधानसभा सीट (Gurua Assembly Seat) बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र रही है। यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और 1972 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। पहली बार 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र नाथ वर्मा ने जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद इस सीट पर राजनीतिक समीकरण लगातार बदलते रहे। कांग्रेस ने दो बार, निर्दलीय उम्मीदवार ने एक बार, आरजेडी ने चार बार और बीजेपी ने दो बार यहाँ जीत हासिल की।
चुनावी इतिहास
गुरुआ विधानसभा सीट पर आरजेडी का दबदबा खासतौर से 2000 से 2005 के बीच देखने को मिला, जब शकील अहमद खान लगातार तीन बार जीत दर्ज करने में सफल रहे। इसके विपरीत, जेडीयू ने इस सीट पर कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। 2020 में आरजेडी के विनय यादव ने बीजेपी के राजीव नंदन डांगी को करीब 6600 वोटों से हराया, जबकि बसपा के राघवेंद्र नारायण यादव तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
गुरुआ की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं। मुस्लिम, यादव, राजपूत, कोइरी और पासवान मतदाता इस क्षेत्र में चुनावी रणनीति और परिणाम को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि दल अक्सर उम्मीदवार चयन और प्रचार रणनीति में जातीय संतुलन पर विशेष ध्यान देते हैं।
रफीगंज विधानसभा सीट : कांग्रेस से महागठबंधन तक का बदलाव और 2025 की चुनौती
राजनीतिक इतिहास और मतदाता संरचना को देखते हुए गुरुआ विधानसभा सीट 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी रणनीतिक रूप से अहम साबित होगी। आरजेडी और बीजेपी के बीच संभावित मुकाबला, उम्मीदवारों की लोकप्रियता और स्थानीय मुद्दों का प्रभाव इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकता है। पिछले चुनावों के आंकड़े और जातीय समीकरण बताते हैं कि गुरुआ विधानसभा सीट में सियासी हलचल हमेशा सक्रिय रहती है और आगामी चुनाव में भी यह क्षेत्र सुर्खियों में रहेगा।






















